Pandit Acchan Maharaj Biography in Hindi

Pandit Acchan Maharaj (Father of Pt. Birju Maharaj)

The eldest son of Pt. Kalka Prasadaji was Pandit Acchan Maharaj. Pandit Achchan Maharaj was born about 1893 AD in his Nanihal village, Lamuha district, Sultanpur. His full name was Jagannathprasad. But from childhood, he had such a good nature that he was known as ‘good brother’, that is why his name became ‘Acchan’.

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Shri Acchan Maharaj received his dance education from his Tau Bindadin Maharaj. He was a court dancer in the ashram of Nawab Rampur and Raja Chakradhar Singh of Raigad for a long time, but then returned to Lucknow. He loved the city of Lucknow. They often used to say that Nawabi Najakat flows in the air here, which is as much for Nach and Nachchaiya as a mountain for a tuberculosis patient.

His Expertise and Dedication

Even though the body of Acchan Maharaj was somewhat gross, yet in a double speed rhythm, he used to present dizzy or confused with great ease and softness. Acchan Maharaj was a full-fledged performer. They had full authority on both the expressions and the rhythm of the Kathak dance. In addition to the three talas, he also danced skillfully and presented the most difficult rhythms very easily. New pieces, Paran’s recollections were also done by him immediately. His performance was also very impressive and also extraction of “Aanchal-Gat” was very famous. His only son, Shri Birju Maharaj, is the representative dancer of Kathak Satya in the present Samam. Pandit Acchan Maharaj died May 11, 1947 in Lucknow .

Pandit Acchan Maharaj Biography in Hindi / पं. अच्छन महाराज जी की जीवन-यात्रा

पंडित कालका प्रसादाजी के पुत्रो में सबसे बड़े पं. अच्छन  महाराज थे। इनका जन्म सन 1893 ई. के लगभग  अपने  ननिहाल ग्राम  लमुहा जिला सुल्तानपुर में हुआ था। इनका पूरा नाम जगन्नाथप्रसाद था। किन्तु बचपन से ही इनका स्वभाव  इतना अच्छा था कि ये ‘अच्छे भईया’ के नाम से जाने जाते थे, इसी कारण से इनका नाम ‘अच्छन ‘ हो गया था।

पंडित अच्छन  महाराज जी को नृत्य की शिक्षा अपने ताऊ पंडित बिंदादीन महाराज जी से प्राप्त  हुई थी। ये  लम्बे समय तक नवाब रामपुर तथा रायगढ़ के राजा चक्रधर सिंह के आश्रम मे दरबारी  नर्तक रहे , किन्तु फिर लौटकर लखनऊ आ गये । इन्हे  लखनऊ शहर से बहुत प्यार था । ये अक्सर कहा करते थे कि यहा की बयार  मे नवाबी  नजाकत बहती है, जो नाच और नचकैया के लिए उतनी ही मुफीद है जितनी की एक तपेदिक के मरीज को  पहाड़ की।

उनकी विशेषज्ञता और समर्पण

यधपि पंडित अच्छन महाराज का शरीर कुछ स्थूल था, फिर भी द्रुत लय मे चक्कर या भ्र्मरियो को वे बड़ी सुगमता व कोमलता से प्रस्तुत करते थे। अच्छन महाराज एक पूर्णनृत्यकार थे। कथक नृत्य के भाव तथा ताल दोनों ही पक्षों  इनका पूरा अधिकार था। तीनताल के अलावा अन्य तालो  में भी वे कुशलता से नाचते थे और कठिन से कठिन लयकारी को अत्यन्त सरलता से प्रस्तुत कर देते थे।  नए-नए टुकड़े , परन की स्चना भी ये तत्काल कर लेते थे । |इनका भाव प्रदर्शन भी बहुत प्रभावशाली था | इनकी “आँचल-गत” की निकासी बहुत प्रसिद्ध थी। इनके एक मात्र पुत्र  श्री बिरजू महाराज वर्तमान समम मे कथक सत्य के प्रतिनिधि  नृत्यकार  है । पंडित अचन महाराज का निधन 11 मई, 1947 को लखनऊ में हुआ था।

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